बदलाव
बदलाव
______
मेरा देश जल रहा है
कोई नहीं बुझाने वाला
जिस पर भी किया भरोसा हमने
उसने है हमको छल डाला है।
जिसको देखो अपनी ही खातिर
रोज नए दांव खेल रहा है
ना जाने नित नए अंदाज़ में
औरों को वो लील रहा है।
ना बचा कोई ईमान यहां अब
ना ही धरम कुछ शेष बचा है
जीवन की इस चौपड़ पर देखो
पांसे कैसे डाल रहा है।
कहां गया वो प्रेम हमारा
जिसमें राम का त्याग रहा
कृष्ण का उपदेश गीता में
मीरा का संदेश रहा।
ना सूर के दोहे प्रासंगिक
ना कबीर की चौपाई ही लगती
रहीम की वाणी नहीं लगती
और ना रसखान का प्रेम ही भाता।
ना वाल्मीकि रामायण से लगाव
और ना नानक के शबद ही लगते
कैसे हो गए हैं लोग ये मेरे
संस्कारों को क्यूं जंग लग गई है?
क्या हुआ हमारे संस्कारों को
कहां खो गई संस्कृति हमारी
आज आदमी ही आदमी का
दुश्मन बनकर जी रहा है।
एक दौर था जब होता था
दर्द मेरे एक भाई को
कुनबा पूरा ही खड़ा होता था
उसकी देख भलाई को।
आलम आज मत पूछो हम से
ऐसा कुचक्र समय का आया है
बेटा करता एश विदेश में
बुजुर्ग वृद्धाश्रमों की शोभा है।
क्या नैतिकता की सीख यही है
क्या यही हमारे मूल्य हैं
क्या आँखों में अपनी अब
जरा भी पानी नहीं बचा है।
क्या कुछ पाया था हमने
क्या भावी पीढ़ी को दे रहे हैं
माफ़ नही कर पाएगा भविष्य
आज की इन नादानियों को।
फिर ना राम अवतरित ही होंगे
कृष्ण न सारथी बन फिर आएंगे
बुद्ध महावीर जीसस पैगम्बर भी
तुमको बदल ना पाएंगे।
तुमको बदल ना पाएंगे…
तुमको बदल ना पाएंगे…
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट (मध्य प्रदेश)