बदलाव
पुरुष वर्चंस्व का विरोध करती
फिर भी पुरुष के लिये सजती
नहीं बिठा पायी तालमेल नारी
कथनी करनी में अंतर करती
अच्छा हो छोड़े वह अपने बुने जालों को
मुक्त हो पुरुष अपने अहं के परनालों से
नर और नारी, दोनो कायनात पर भारी
धरती है तो अस्तित्व है गगन का भी
एक दूसरे के बिना जिंदगी रहती अधूरी
समझे दोनों एक दूसरे का महत्व
जब ऐसी ही भावमूमि होगी तैयार
तब आयेगा अवश्य नया बदलाव,
हर परिवार में और समाज में।