“बदलाव की बयार”
🌹बदलाव की बयार🌹
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पहले नदी पारकर व पैदल जाते थे पढ़ने दूर तक,
अब ऑनलाइन ही घर तक पहुॅंच जाते हैं पुस्तक।
विद्यालय व अस्पताल आ चुका अब हर गाॅंव तक,
“बदलाव की बयार” चली इतनी, हैं हम नतमस्तक।
आज हमारा देश हर क्षेत्र में ही हुआ है खूब उन्नत ,
चमकी है हरेक जनता एवं घर-घर की ही किस्मत।
हज़ारों मील के सफ़र में लगते अब, कुछ घंटे भर,
“बदलाव की बयार” चली इतनी,हैं हम नतमस्तक।
करिश्माई विज्ञान से है चमकी कृषकों की किस्मत ,
उन्नत फसलों से मुग्ध हो वर्ष भर मनाते हैं वे उत्सव।
मशीन ने ली है जगह होती अब श्रम की खूब बचत,
“बदलाव की बयार” चली इतनी , हैं हम नतमस्तक।
टेक्नोलॉजी का क्या कहना पहुॅंचे हम दूर चाॅंद तक ,
वहाॅं हो रही हर हलचल को पहुॅंचाते उपग्रह घर तक।
दुनियाभर में बनी देश की पहचान अपने ही बल पर,
“बदलाव की बयार” चली इतनी , हैं हम नतमस्तक।
© अजित कुमार “कर्ण” ✍️
~ किशनगंज ( बिहार )
( स्वरचित एवं मौलिक )
@सर्वाधिकार सुरक्षित ।
दिनांक :- 22 / 04 / 2022.
प्रेषित :- 27 / 06 / 2022.
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