बदलते विचार
कुछ पंक्तियों को समर्पित करता हूं , इसे हमारा एक प्रयास ही समझिएगा। ??
अब तुम्हारे लफ्ज़ो में रस नही ।
इसे मैं कैसा बदलाव समझूँ ।।
तेरे शब्दो का स्वाद अब तीखा सा हो गया ।
क्या शब्दकोष में शब्दों का अभाव समझूँ ।।
विचारों के साथ अब तुम भी बदल गए ।
इसे मैं किसका दबाव समझूँ ।।
फासले तो अनवरत जारी है अब ।
इसे कैसी हवा का बहाव समझूँ ।।
दर्द तो अब महसूस होने लगा हमे ।
इसे किसका दिया हुआ घाव समझूँ ।।
खामोशी नजर आने लगी तेरे लबों पर ।
इसे सच समझूँ या बचाव समझूँ ।।
?️अनु कुमार ओझा की कलम से