** बदलते रिश्ते … **
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अपने तो हैं अपनापन नहीं ,
भाई तो हैं भाईचारा नहीं ।
रहा कोई किसी का सगा नहीं ,
रिश्ते तो हैं पर वफ़ा नहीं ।।
स्वार्थ से भरी इस दुनिया में ,
अपनों को अपनों से प्यार नहीं ।
खून के रिश्ते भी हुए पराए ,
रहा खून पर अब ऐतबार नहीं ।।
बदलते रिश्ते बदलते ढंग ,
जाने कब कौन दिखाए कैसा रंग ।
मतलब के रह गए सब रिश्ते हैं ,
चलते नहीं अपने अब मुश्किल में संग ।।
हो बात ख़ुशी की तो गैर भी साथ हो लेते हैं ,
आए जो संकट तो अपने भी मुँह मोड़ लेते हैं ।
खुलता है भेद अपने-पराये का मुश्किल में ही ,
छोड़ दें संकट में वो रिश्ते सिर्फ नाम के होते हैं ।।
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