बदलते रिश्ते
सामुदायिक व्यवस्था में परिवार का महत्व आदिकाल से रहा है। विभिन्न समुदायों में परिवारों के विभिन्न प्रकार परिभाषित किए गए हैं।
जिसमें अधिकांश पितृसत्तात्मक एवं कुछ विशेष मातृसत्तात्मक परिवार एवं कुछ समुदाय विशेष मुखिया संचालित कबीले अथवा संयुक्त परिवार अस्तित्व में देखे गए हैं । सांप्रदायिक ,जातिगत अथवा धर्म के आधार पर परिवारों को विघटित किया गया है।
संयुक्त परिवार की संरचना का आधार अनुशासन, सामाजिक सुरक्षा , सहकार , सहअस्तित्व भावना एवं पारिवारिक संपत्ति प्रबंधन है। जिसमें परिवार के प्रज्ञावान् वयोवृद्ध मुखिया की भूमिका निभाकर सर्वमान्य निर्णय लेते हैं।
कालांतर में संपत्तियों के हितग्राहियों में बटवारे के फलस्वरूप उत्पन्न विवादों के कारण संयुक्त परिवार विघटित होकर परिवारों के स्वरूप में परिवर्तन होकर वर्तमान केंद्रिक परिवारों की इकाई का जन्म हुआ।
वर्तमान में परिवारों के अस्तित्व का आधार भावनात्मक पारिवारिक संबंधों के स्थान पर पारिवारिक आय एवं पारिवारिक संपत्ति बनकर रह गया है। जो इन संबंधों के टूटने एवं बिखरने का मुख्य कारण है।
यह सत्य है कि आज के भौतिक युग में पारिवारिक जीवन निर्वाह एवं पोषण के लिए पारिवारिक आय का महत्व है। परंतु स्वार्थपरक व्यक्तिगत सुखों की लालसा हेतु परिवार के अन्य सदस्यों के हितों के प्रति उदासीनता एवं संवेदनहीनता रिश्तो के टूटने का प्रमुख कारण बनता जा रहा है।
परिवार में वयोवृद्धों की उपेक्षा एवं अनादर के कारण भावनात्मक संबंध क्षीण हो रहे हैं।
संस्कार विहीन समूह मानसिकता से ग्रस्त एक नवीन पीढ़ी का जन्म हो रहा है। व्यक्तिगत स्वार्थ एवं आकांक्षाओं की पूर्ति जिसका सर्वोपरि उद्देश्य है।
प्रज्ञावान् वयोवृद्धों की सलाह न लेने से लिए गए पारिवारिक निर्णयों में अनुभवहीनता परिलक्षित होती है एवं कभी-कभी गलत निर्णय का कारण बनती है।
वर्तमान सामाजिक संरचना में स्त्री एवं पुरुष दोनों की समान रूप से आर्थिक सक्षमता के कारण स्त्रियों में आर्थिक परावलंबन की स्थिति में सुधार हुआ है एवं पारिवारिक अर्थव्यवस्था में उनका एक बड़ा योगदान सिद्ध हुआ है।
परिवार में पति पत्नी दोनों के आर्थिक रूप से सक्षम होने के कारण पारिवारिक आय में वृद्धि हुई है। जिसके कारण परिवार की जीवन शैली परिवर्तित होकर विलासिता के खर्चों में बढ़ोतरी हुई है। भविष्य हेतु आर्थिक बचत में कमी आई है।
आय का अधिकांश भाग उपभोक्ता वस्तुओं में खर्च हो जाता है। इसके अतिरिक्त विलासिता के उपकरण एवं संसाधन जुटाने के लिए बैंकों से लिए गए ऋण की किस्तें चुकाने में आय की कटौती हो जाती है। अतः आर्थिक दृष्टि से सुनियोजित
प्रज्ञाशील निर्णय लेने की आधुनिक परिवारों में कमी देखी गई है।
स्त्रियों में जागरूकता एवं आर्थिक स्वतंत्रता के कारण स्वतंत्र जीवन निर्वाह करने का भाव उत्पन्न हुआ है। आज की स्त्री जीवन निर्वाह के लिए पुरुष के अधीन रहना नहीं चाहती है।
पति पत्नी में मतभेद के कारण विवाह विच्छेद होना एक आम बात बन चुकी है। इस विषय में कुछ हद तक भौतिक सुखों की लालसा भी जिम्मेदार है। अन्य कारणों में विवाहेतर संबंध , व्यसन , संपत्ति इत्यादि हैं।
स्त्री पुरुष एक साथ विवाह के बंधन में न बंध कर एक साथ जीवन निर्वाह की परिपाटी वर्तमान में प्रस्तुत हुई है , जिसे लिव इन रिलेशनशिप के नाम से जाना जाता है।
इस व्यवस्था में आर्थिक रूप से स्वतंत्र स्त्री पुरुष साथ रहकर अपना जीवन में निर्वाह करते हैं।
एवं अपनी इच्छा अनुसार अंतरंग संबंध बनाने के लिए स्वतंत्र हैं। इस प्रकार के संबंध को कानूनी मान्यता प्राप्त है।
अतः पारिवारिक व्यवस्था के बदलते स्वरूप को हम अनुभव कर रहे हैं ।संबंधों की सार्थकता एवं घनिष्ठता एक प्रश्नवाचक चिन्ह बनकर रह गई है। भौतिक जगत में पारिवारिक संबंधों के आधार स्तंभ संस्कार एवं पारिवारिक मूल्यों के क्षरण से संबंधों में दरार उत्पन्न हो रही है। संबंधों के स्थायित्व की अनिश्चितता बनी हुई है।
समाज में अच्छे एवं प्रतिष्ठित परिवार टूट चुके हैं , और कुछ टूटने की कगार पर हैं ।
इन सब विसंगतियों के लिए समाज में व्याप्त व्यक्तिगत स्वार्थ , ईर्ष्या ,द्वेश , प्रतिस्पर्धा एवं भौतिक लालसा जिम्मेदार है ,जो आए दिन बदलते रिश्तो के स्वरूप में प्रदर्शित होती है।