” बदलते परिवेश में बदलती मित्रता “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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परिवर्तन के प्रहारों से शायद ही कोई बच पाये ! हम जब बच्चे होते हैं तो हमारे खेलों ,हमारे स्कूलों और समाजिक कार्यकलापों के माध्यमों से हमारे मित्रता का दायरा बड जाता है ! उन दिनों मित्रों की संख्या जितनी बड़ी होती थी ..हमें फक्र होता था ! हमारी ‘करणी सेना ‘को देख दूसरे मुहल्ले की सेना में खलवली मची रहती थी ! पर ज्योहिं हम अपने स्कूल या कॉलेज बदलते हैं तो परिवर्तन की बयार बहने लगती है ..हम बदल जाते हैं ..लोग बदल जाते हैं ..दोस्त बदल जाते हैं …माहोल बदल जाता है ! फिर नये मित्रों की टोलियाँ बनने लगती है ! ऐसा ही दौर कॉलेज छोड़ने के बाद होता है !…..फिर हम अपने अपने कार्यों में तल्लीन हो जाते हैं ..मित्रता हर दौर में अलग -अलग बनती है ..पर हर दौर की मित्रता की अनभूति को हम नहीं भूल पाते ! ..यदा कदा भूले से पुराने मित्र मिल जाते हैं पर सब कुछ परिवर्तन के थपेड़ों से मायूसी ही हाथ लगती है ! यह तो भला हो इनफार्मेशन और टेक्नोलॉजी का जो हमें बिरले ही किसी पुराने साथिओं से मिला देता है ..पर शायद ही सब इस हुनर से वाकिफ हो ! ..इस परिवर्तन की आंधी ने एक विचित्र सूनामी के छाप से फेसबुक के पन्नों को भी नहीं छोड़ा ! बस एक मिनट में हम लाखों फेसबुक फ्रेंड बना लेते हैं ! इतनी तीब्रता से शायद हम सैन्य संगठन भी ना कर पायें ! यहाँ तो परिवर्तन का आप्शन दिया गया है ..अनफॉलो …अनफ्रेंड ….ब्लाक ! परिवर्तन तो अवश्यम्भावी है ..पर इस परिवर्तन के प्रकोप को रोकना हमारे हाथों में है ..सबको सम्मान देना …सबके विचारों को अहमियत देना …..मिलना तो प्रायः प्रायः बिरले ही होगा पर बातें और पत्राचार तो हम कर सकते हैं …..और सबसे बड़ी बात हमें एक दूसरे के पसंदों और नापसंदों को बड़े गहराईयों से सोचना और समझना होगा …फिर हम आपदा प्रबंधन के महारथी बन जायेंगे और परिवर्तन की सूनामी लहर हमें कुछ नहीं कर पायेगी !
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका ,
झारखंड
भारत