Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
31 Mar 2019 · 2 min read

बदलते परिवेश में पिता और पुत्री

राजा जनक व उनकी दुलारी सुपुत्री सीता आज भी भारतीय संस्कृति में पिता व पुत्री के मध्य स्नेह, प्रेम व वात्सल्य के सामंजस्य के अद्वितीय उदाहरण के रूप में स्थापित है।
यदि हम अपनी अति प्राचीन पुरातन कालीन भारतीय संस्कृति का साहित्य उठा कर देखें तो उसमें स्पष्ट परिलक्षित होता है कि हमारे प्राचीन समाज में परिवार में पुत्री काफी सीमा तक आत्म सम्मान से युक्त व स्वतंत्र थी। वह विदुषी, धनुर्विद्या, युद्ध कला में पारंगत, वीर व निडर होने के साथ ही साथ परिवार की एक सम्मानित सदस्य हुआ करती थीं।
कालांतर में भारत में विदेशी आक्रांताओं के आगमन से पर पुरुषों की कुदृष्टि से बचाने के लिए हर पिता की चिंता बढ़ीं और परिणामतः स्त्री वर्ग को सहेजा जाने लगा। सुरक्षा की दृष्टि से बहू बेटी को पर्दे में रखा जाने लगा। शनैः शनैः इसका रूप विकृत हो गया और सामाजिक परिवेश में पुरुष वर्चस्व बढ़ा। बेटी को अनावश्यक प्रतिबंधित किया जाने लगा।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दृष्टि डालें तो दृष्टिगत होता है आज का युग शिक्षाप्रधान व प्रगतिशीलता का युग है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में नारी शिक्षा का प्रचार प्रसार हुआ। जनता जागरूक हुई है। बालक बालिका में भेदभाव वाली सोच में कमी आई है, जिसके फलस्वरूप आज बच्चियां अपने जन्मदाता के अधिक निकट आई हैं उनके प्रति अधिक मुखर हुई हैं।

आज के पिता अपनी बेटी को समुचित पालन पोषण देकर इंदिरा गांधी, किरण बेदी, कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, बछेंन्द्री पाल, सुषमा स्वराज बना रहे हैं और उन्नति के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा रहे हैं। इसमें वे अपनी सबसे बड़ी खुशी देख रहे हैं।

वैसे देखा गया है कि पुत्री का स्नेह लगाव पिता के प्रति अत्यधिक होता है।

व्यक्ति की सोच में बदलाव के साथ साथ दृष्टिकोण भी विस्तृत हुआ है। बेटी के विवाहोपरांत अब पिता उसकी ससुराल भी जाता है व अन्न जल भी ग्रहण करता है जो कि एक बेटी के लिए सबसे बड़ी खुशी है।
पिता आज बेटी के साथ उसके घर पर निस्संकोच वृद्धावस्था का समय गुजारते हैं।
सबसे उल्लेखनीय बात जो आजकल कई वृद्ध पिताओं को अंतिम यात्रा में कंधा देना तथा उनका अंतिम संस्कार भी बेटियाँ ही कर रही हैं।
श्राद्ध पक्ष में तर्पण व श्राद्ध कर्म भी बेटी कर रही है।

आज के सामाजिक परिवेश में पिता पुत्री के मध्य निकटता बढ़ी है। पुत्री पिता से निस्संकोच विचार विमर्श करती है व समय पड़ने पर पिता के बुढ़ापे की लाठी भी बन रही हैं।

रंजना माथुर
जयपुर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

Language: Hindi
Tag: लेख
413 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
डॉ. अम्बेडकर ने ऐसे लड़ा प्रथम चुनाव
डॉ. अम्बेडकर ने ऐसे लड़ा प्रथम चुनाव
कवि रमेशराज
ये नोनी के दाई
ये नोनी के दाई
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
मजदूर की मजबूरियाँ ,
मजदूर की मजबूरियाँ ,
sushil sarna
ग़ज़ल /
ग़ज़ल /
ईश्वर दयाल गोस्वामी
रतन टाटा जी की बात थी खास
रतन टाटा जी की बात थी खास
Buddha Prakash
Character building
Character building
Shashi Mahajan
क़िताबों से मुहब्बत कर तुझे ज़न्नत दिखा देंगी
क़िताबों से मुहब्बत कर तुझे ज़न्नत दिखा देंगी
आर.एस. 'प्रीतम'
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Rekha Drolia
तुम्हीं मेरा रस्ता
तुम्हीं मेरा रस्ता
Monika Arora
क्या एक बार फिर कांपेगा बाबा केदारनाथ का धाम
क्या एक बार फिर कांपेगा बाबा केदारनाथ का धाम
Rakshita Bora
23/156.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/156.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*सत्य ,प्रेम, करुणा,के प्रतीक अग्निपथ योद्धा,
*सत्य ,प्रेम, करुणा,के प्रतीक अग्निपथ योद्धा,
Shashi kala vyas
समस्याओ की जननी - जनसंख्या अति वृद्धि
समस्याओ की जननी - जनसंख्या अति वृद्धि
डॉ. शिव लहरी
खुलेआम मोहब्बत को जताया नहीं करते।
खुलेआम मोहब्बत को जताया नहीं करते।
Phool gufran
हिंदी है भारत देश की जुबान ।
हिंदी है भारत देश की जुबान ।
ओनिका सेतिया 'अनु '
खता खतों की नहीं थीं , लम्हों की थी ,
खता खतों की नहीं थीं , लम्हों की थी ,
Manju sagar
प्रिय गुंजन,
प्रिय गुंजन,
पूर्वार्थ
श्रंगार के वियोगी कवि श्री मुन्नू लाल शर्मा और उनकी पुस्तक
श्रंगार के वियोगी कवि श्री मुन्नू लाल शर्मा और उनकी पुस्तक " जिंदगी के मोड़ पर " : एक अध्ययन
Ravi Prakash
कैमिकल वाले रंगों से तो,पड़े रंग में भंग।
कैमिकल वाले रंगों से तो,पड़े रंग में भंग।
Neelam Sharma
मित्रता चित्र देखकर नहीं
मित्रता चित्र देखकर नहीं
Sonam Puneet Dubey
जनता को तोडती नही है
जनता को तोडती नही है
Dr. Mulla Adam Ali
न ही मगरूर हूं, न ही मजबूर हूं।
न ही मगरूर हूं, न ही मजबूर हूं।
विकास शुक्ल
जिंदगी हमेशा इम्तिहानों से भरा सफर है,
जिंदगी हमेशा इम्तिहानों से भरा सफर है,
Mamta Gupta
"इंसान की फितरत"
Yogendra Chaturwedi
"यादों के स्पर्श"
Dr. Kishan tandon kranti
When winter hugs
When winter hugs
Bidyadhar Mantry
सातो जनम के काम सात दिन के नाम हैं।
सातो जनम के काम सात दिन के नाम हैं।
सत्य कुमार प्रेमी
सावन का महीना आया
सावन का महीना आया
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
परम तत्व का हूँ  अनुरागी
परम तत्व का हूँ अनुरागी
AJAY AMITABH SUMAN
प्रणय
प्रणय
*प्रणय*
Loading...