बदलते परिवेश में पिता और पुत्री
राजा जनक व उनकी दुलारी सुपुत्री सीता आज भी भारतीय संस्कृति में पिता व पुत्री के मध्य स्नेह, प्रेम व वात्सल्य के सामंजस्य के अद्वितीय उदाहरण के रूप में स्थापित है।
यदि हम अपनी अति प्राचीन पुरातन कालीन भारतीय संस्कृति का साहित्य उठा कर देखें तो उसमें स्पष्ट परिलक्षित होता है कि हमारे प्राचीन समाज में परिवार में पुत्री काफी सीमा तक आत्म सम्मान से युक्त व स्वतंत्र थी। वह विदुषी, धनुर्विद्या, युद्ध कला में पारंगत, वीर व निडर होने के साथ ही साथ परिवार की एक सम्मानित सदस्य हुआ करती थीं।
कालांतर में भारत में विदेशी आक्रांताओं के आगमन से पर पुरुषों की कुदृष्टि से बचाने के लिए हर पिता की चिंता बढ़ीं और परिणामतः स्त्री वर्ग को सहेजा जाने लगा। सुरक्षा की दृष्टि से बहू बेटी को पर्दे में रखा जाने लगा। शनैः शनैः इसका रूप विकृत हो गया और सामाजिक परिवेश में पुरुष वर्चस्व बढ़ा। बेटी को अनावश्यक प्रतिबंधित किया जाने लगा।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दृष्टि डालें तो दृष्टिगत होता है आज का युग शिक्षाप्रधान व प्रगतिशीलता का युग है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में नारी शिक्षा का प्रचार प्रसार हुआ। जनता जागरूक हुई है। बालक बालिका में भेदभाव वाली सोच में कमी आई है, जिसके फलस्वरूप आज बच्चियां अपने जन्मदाता के अधिक निकट आई हैं उनके प्रति अधिक मुखर हुई हैं।
आज के पिता अपनी बेटी को समुचित पालन पोषण देकर इंदिरा गांधी, किरण बेदी, कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, बछेंन्द्री पाल, सुषमा स्वराज बना रहे हैं और उन्नति के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा रहे हैं। इसमें वे अपनी सबसे बड़ी खुशी देख रहे हैं।
वैसे देखा गया है कि पुत्री का स्नेह लगाव पिता के प्रति अत्यधिक होता है।
व्यक्ति की सोच में बदलाव के साथ साथ दृष्टिकोण भी विस्तृत हुआ है। बेटी के विवाहोपरांत अब पिता उसकी ससुराल भी जाता है व अन्न जल भी ग्रहण करता है जो कि एक बेटी के लिए सबसे बड़ी खुशी है।
पिता आज बेटी के साथ उसके घर पर निस्संकोच वृद्धावस्था का समय गुजारते हैं।
सबसे उल्लेखनीय बात जो आजकल कई वृद्ध पिताओं को अंतिम यात्रा में कंधा देना तथा उनका अंतिम संस्कार भी बेटियाँ ही कर रही हैं।
श्राद्ध पक्ष में तर्पण व श्राद्ध कर्म भी बेटी कर रही है।
आज के सामाजिक परिवेश में पिता पुत्री के मध्य निकटता बढ़ी है। पुत्री पिता से निस्संकोच विचार विमर्श करती है व समय पड़ने पर पिता के बुढ़ापे की लाठी भी बन रही हैं।
रंजना माथुर
जयपुर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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