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16 Mar 2021 · 1 min read

बदलती फ़िजा

बदल रही है फ़िजा,
आवो हवा शहर की,
अब है फ़िक्र किसे
अमृत वा ज़हर की|
लगा है ‘मयंक’
जिसे देखिए स्वारथ में,
कहाँ खबर है किसी को
सुनहरे प्रहर की|
बेवज़ह ही रिश्ते
बदनाम हो रहे हैं,
गलतफ़हमी में
चक्केजाम हो रहे हैं|
बुद्धिजीवी चंगुल में
हैं रिश्तों की डोरियाँ,
उनके हरेक काम
सरेआम हो रहे हैं|
✍ के.आर.परमाल ‘मयंक’

Language: Hindi
1 Comment · 304 Views
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