बदलता परिवेश
मेरी कलम से….✍
कितना बदल गया ये परिवेश,
कितना बदल गया मेरा देश।
घर घर में है सन्नाटा और,
हर घर में है आज क्लेश।।
कितना बदल गया ये परिवेश,
कितना बदल गया मेरा देश।।।।
लूटपाट, डकैती और भ्र्ष्टाचार,
कहीं मासूमों की हत्या और
बलात्कार।
ये सब प्रतिदिन फलफूल रहे हैं,
जिसका कोई अंत नहीं।
समाज को सही राह दिखा सके,
आज ऐसा कोई दरवेश या सन्त
नहीं।।
दिलों में घृणा और बसा राग द्वेष,
कितना बदल गया ये परिवेश,
कितना बदल गया मेरा देश।।।।
पुत्र से पिता और पिता से दादा
बन गए,
रिश्ते बदल गए रिवाज़ बदल गए।
रंक से राजा और राजा से रंक
हुए,
देखते ही देखते ताज़ बदल गए।।
मानव सर्वोच्च बन बैठा…
बौने पड़ गए ब्रह्मा-विष्णु-महेश,
कितना बदल गया ये परिवेश,
कितना बदल गया मेरा देश।।।।
सनातन संस्कृति से विमुख
होकर,
छोटे बड़ों का आदर भूल गए।
लालसा लालच के वशीभूत
होकर,
जिसमें पैर समा सकें वो चादर
भूल गए।
झूठी शानोशौकत, दिखावा….
और अहंकार का मन में है
प्रवेश।।
कितना बदल गया ये परिवेश,
कितना बदल गया मेरा देश।।।।
अंत में निवेदन कर रहा हूँ।
??✍✍
कवि “गुप्ता” हाथ जोड़कर,
कहे सभी से सुनलो हे महाराज।
विश्वगुरु था अपना देश कभी,
परन्तु भूल गए सब आज।।
अपनी संस्कृति को पहचानों,
बच सके तो बचा लो उसको,
बची है जो थोड़ी सी लाज।।
संजय गुप्ता।