बदलता परिवेश और परिवार
“समय बदला,बदले रिश्ते और बदला घरबार है
दुनिया बदली,जहां है बदला और बदला परिवार है,
गुजरे वो दिन यारो जब घर छोटे बन पडते थे
रिश्तो मे था प्यार और दरार ना मालुम पडते थे,
सम्मान बहुत होता था,एक-दुजे के भावनाओ की
होता था मान वरिष्ठता का रिश्तो मे अपनो की,
गौरवशाली होता था परिवार और समाज
नही महत्ता थी पैसो कि,जितनी होती है आज,
बडे-बडे महलो मे अब कुटुम्ब छोटे से होते है
आधुनिकता के पर्दे मे अब रिश्ते छोटे होते है,
सुनी रहती कलाई,ना भाई-बहन का प्यार यहां
सुहाती नही आंखो को एक-दुजे का विकास यहा,
सर्वस्व लुटाया जीवन जिन बच्चो पर उन्होने
बोझ बनके रह गये है वे आज उन्ही बच्चो मे,
दो पल का भी वक्त नही एक-दुजे से संवादो को
बांट दिया आधुनिकता ने भाई-भाई के इरादो को,
तीव्र होते विकास कि गति मे,रिश्ते पिछड गये आज
सम्मान,प्यार सब डुब गये,रिश्तो मे पडी ऐसी खटास ।”