बदन में एक साँस बाकी है..
मेरी गली है क्यूँ सुनसान,
यहाँ तो खुशबू महकती थी,
मेरे सनम के साथ हुई है कुछ अनहोनी,
वरना तो यहाँ,
बुलबुल चहकती थी ।
बनकर वो ज़हरीला रस,
घुल गया है फिज़ाओं में,
क़भी रसखान के प्रेम की,
बजती थी बाँसुरी,
आज यहाँ इंसान से,
इंसान की परछाई डरती है ।
यहाँ अँधेरा बहुत,
है इस जहाँ में,
लेक़िन उजाला रोशनी का अभी बाकी है ।
तुझे गर मिल जाए शुकूँ,
तब तक सता लेना,
देखता हूँ मैं तेरे ज़ुल्म की हद को,
मेरे सब्र का अभी,
इम्तिहाँ बाकी है ।
देख लेने दे मुझे जीभर,
चेहरा मेरे दिलदार का,
फ़िर मेरी रुह से तुझको,
ना कोई शिक़वा रहेगा,
दीदार करलें तेरा,
ये मेरे व्याकुल नयन,
जब तक इस बदन में एक साँस बाकी है ।