बदकिस्मती को कहिये तो क्या कहिये
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मगर इस बदकिस्मती को कहिये तो क्या कहिये!
हम मिले मगर,अपनी ही जमीन नहीं है पांव तले।
धमका-डरा देगा यह आकाश यह हवा क्या जानें?
सहम जायेंगे हम,हम तो अच्छे शिशु जैसे हैं पले।
कितना बदनसीब है पहाड़ की वह अल्हड़ लड़की।
आका को ताकती है,कि अच्छे लगे लडके से मिले कि न मिले।
साहित्य का रिश्ता शब्दों का नहीं पीड़ा,दर्दों का है।
रुकते नहीं ये रिश्ते जब दर्द आंसू बनकर निकले।
देश,काल,धर्म,लिंग,रंग,शक्ल से परे है रचनाकार।
क्यों करेंगी सरकारें तय ये जुड़वें बच्चे मिलें न मिलें।
मगर इस बदकिस्मती को कहिये तो क्या कहिये?
हम मिले मगर,अपनी ही जमीन नहीं है पांव तले।
वक्त गरम लोहा है कि लोग आओ यह तय कर दो।
सहारा और संरक्षण आ जीवन के सारे गड्ढे भर दो।
झांकता रहा अजनबीपन आँखों से संरक्षण होने तक।
रहा नहीं तो दोस्त और दोस्ती की बातें आ झलके।
कैसा अजीब हादसा हुआ इस अच्छी जिन्दगी में।
आदमीपन जो था आदमी में वह टूटे-फूटे निकले।
उम्र का अहसास कराता सोचों का दर्द कि जोड़ों का?
दर्दों के कोख से जो उमर निकले सब मरे निकले।
समय की बोतलों के काग खुलें,धमाका हो हादसा है।
उम्र की चाहत है वह जब निकले अपनों सा निकले।
घृणा और युद्ध के लिए नहीं भरे हैं लोगों ने टैक्स।
लड़ें सत्ता और कुर्सियां और दम हमारे निकलें।
धूप बूढ़ा नहीं होते हैं हम,होता है मन का देह।
जीवन की तपिश बर्दाश्त नहीं होती कैसे जलें!
मर्दानापन की परिभाषा गई बदल कब पता नहीं।
मर्द वह जो करे बलात्कार मर्दों का दिन-दुपहरी,साँझ ढले।
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