बताऊँगा तुम्हें वो बात
बताऊँगा तुम्हें वो बात जो खुद से छिपाता हूँ
तुम्हीं हो देखकर जिसको मैं ये गजलें बनाता हूँ
गलतफहमी की इस दीवार का है बस सिला इतना
उधर तुम जुड़ नहीं पाते इधर मैं टूट जाता हूँ
समझना न मुझे खुश,देखकर तस्वीर तुम मेरी
मेरी आदत है मैं औरों के सम्मुख मुस्कुराता हूँ
मनाऊँ मैं तुम्हें हरदम मुझे अच्छा नहीं लगता
चलो अब तुम मनाओ अब चलो मैं रूठ जाता हूँ
सिखाया जिंदगी ने इस तरह कुछ बेरहम होकर
लिफाफा देखकर मजमून खत का भाँप जाता हूँ
खुदा बरकत तुम्हें देता है पर तुम खुश नहीं होते
मुझे देखो मैं गम में भी हमेशा मुस्कुराता हूँ
बुझा देते हो तुम दीपक सदा तूफ़ान से डरकर
मैं तूफानों से लड़ने के लिए दीपक जलाता हूँ
बुरा क्यों मान जाता है तू मेरी बात का ‘संजय’
ये तो आईना है जो मैं तुझे हर दिन दिखाता हूँ