बतहा संसार
के अप्पन छै
सभ्भ काठ के बनल
सुख के संगी
ई सगरो संसार बनल
नोर नै पौछे केओ
घर घर मे
अप्पन अप्पन के
एकटा भगवान बनल
आ
लजाए हृदय आय
हाय रे जनना
मानव धर्म मजाक
चान सेहो नुकायल
चोर चोहार बहरायल
कनियाँ बनाम ज्ञानी
जे दू आखर पढ़ल
धधकाऐ ज्वाला
बतहा सगर ई
संसार बनल
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य