बढ़ती जा रही सुविधाएं,सुख घटता जा रहा
बढ़ती जा रही सुविधाएं,सुख घटता जा रहा।
पता नही मानव,किस दिशा में अब जा रहा।।
सामान बढ़ता जा रहा,सम्मान घटता जा रहा।
पता नही समाज में,ऐसा क्यों होता जा रहा।।
पता है सबको,जानकर इंसानअनजान बन रहा।
विश्व उन्नति के पथ छोड़ किस ओर है जा रहा।।
चलता रहा ये सब कुछ तो व्यवस्थाएं चरमरा जायेगी।मानवविकास की योजनाएं अंधकार में चली जायेगी।।
कर रहा है मानव तैयारी चांद पर अब बसने की।
पृथ्वी को सुखद बनाओ फिर सोचो वहा बसने की।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम