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21 Jan 2020 · 1 min read

बडा भला आदमी था

काफिला चला जा रहा था
मै उसके संग
चलने की कोशिश कर रहा था
वो बढ़ता ही जा रहा था
मुझे पीछे छोड़ते हुए
किसी एक ने भी
पीछे मुड़कर नही देखा
कि मै कैसे कहाँ था
आशा मुझे भी थी कि
कोई साथ मुझे ले चले
मै पिछड़ता जा रहा था
पर किससे
अपनों और अपने काफिले से
मैने लाख कोशिश की
साथ चलने की पर
साथ देने वाला न मिला
काश ये काफिला रुकता
और
मुझे अपने संग ले चलता
इस उम्मीद में
मै छला जा रहा था पर
मुझसे और नही चला जा रहा था
लोग समझ रहे थे
मै नाटक कर रहा था
पर ये जमीनी हकीकत थी
लोग चलते रहे
मै जलता रहा
भीतर की अनदेखी आग से
कब जलकर मै राख हो गया
मुझे भी ना पता चला
लोग मेरी राख से खेल रहे थे होली
तभी पास खड़ी
एक मोहतरमा बोली
बडा भला आदमी था
जिसकी आज राख यहां फैली
मै अवाक् देखता रहा
कभी उसके चेहरे को
कभी उस ठण्डी होती राख को ।……….मधुप बैरागी.

Language: Hindi
4 Likes · 1 Comment · 479 Views
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