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12 Jul 2024 · 1 min read

बड़े हो गए अब बेचारे नहीं।

ग़ज़ल

122/122/122/12
बड़े हो गए अब, बेचारे नहीं।
सुनो अब तुम्हारे सहारे नहीं।1

मुझे तैरना आ गया गम न कर,
न डर पास हैं गर किनारे नहीं।2

उठा जब से साया है माॅं का मेरी,
रहे अब किसी के दुलारे नहीं।3

ये किस्मत का ही दोष है और क्या,
मुझे क्यों मिले चांद तारे नहीं।4

झुका दूंगा कदमों में सारा जहां,
मैं झूठे लगाऊंगा नारे नहीं।5

जला दोगे तुम जुर्म का ये जहां,
वो आंखों में दिखते शरारे नहीं।6

खुदाया करूं क्या जो दिल में बसूं,
कि प्रेमी बने फिर भी प्यारे नहीं।7

………✍️ सत्य कुमार प्रेमी

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