बड़ी संजीदगी से
कभी खामोश रहता है , कभी चुपके से कहता है //
रवानी ही रवानी है , बड़ी मुश्किल कहानी है //
भीतर है कहीं कुछ तो ,जो दरिया बन के बहता है //
कभी अख़लाक होता है , कभी मुश्ताक रहता है //
कभी कहता नहीं कुछ भी ,फिर भी बहुत कहता है //
बताओ तो ज़रा कौन है , और क्या वह कहता है //
बड़ी संजीदगी से ही , सब कुछ चुपचाप सहता है ।।
अशोक सोनी ।