बड़ी मंजिलों का मुसाफिर अगर तू
न कर मुश्किलों की तू परवाह कतई,
अगर दिल में ख्वाहिश बुलन्दी को पाना।
बड़ी मंजिलों का मुसाफिर अगर तू,
मुसलसल चला चल कहीं रुक न जाना।
बड़े हौसले से है परवाज करता,
न झुकता न रुकता न डरता जहां में।
नहीं काम छोटे परिन्दे का है ये,
कोई बाज़ उड़ता खुले आसमां में।
अगर नाम करना जमाने के लव पे,
वहीं जाकर रुकना जहाँ है ठिकाना।
बड़ी मंजिलों का मुसाफिर अगर तू,
मुसलसल चला चल कहीं रुक न जाना।
कोई पार कर ले हो छोटी तलैया,
समंदर में किश्ती ले जाता चलैया।
जो लहरों में घुस करके गोता लगाता,
वही अपनी मुट्ठी में मोती है पाता।
इरादों के बाजू फौलादी बना ले,
पहाड़ों के उस पार गर तुझको जाना।
बड़ी मंजिलों का मुसाफिर अगर तू,
मुसलसल चला चल कहीं रुक न जाना।
जुनून हो बड़ा और अमादा बड़ा हो,
हो खुद पर यकीं खुद से वादा बड़ा हो।
हो जज्बा जेहन में मशक्कत का तुझमें,
खयालों में तेरे इरादा बड़ा हो।
हुनर सीख ले गिरकर उठने पहले,
जगह नामवर की अगर तुझको पाना।
बड़ी मंजिलों का मुसाफिर अगर तू,
मुसलसल चला चल कहीं रुक न जाना।
-सतीश सृजन, लखनऊ.’