बड़ी बहु को नौकर छोटी की प्रीत से
होगा तबाही सास की दोहरी नीति से
बड़ी बहु को नौकर छोटी की प्रीत से
ये औरत है कि जालिम की सरदार
करती है अनदेखा अपना घरबार
बेशर्म,बेहया, बैंगन की थाली है
ढीठ की दुकान,दिल की काली है
हो जाती हैं खुश छोटी-छोटी जीत से
बड़ी बहु को नौकर छोटी की प्रीत से
खाने की चीजें छुपा कर रख देती है
सड़ने लगता है तब खानें को देती है
जानें किस कुल खानदान की है
लगता शायद कीड़ा नाबदान की है
बेवकूफ बनाती उल्टी-सीधी रीति से
बड़ी बहु को नौकर छोटी की प्रीत से
जहां लाभ हो जबरन चिपकी रहती है
जहां खर्च हो चुपचाप खिसकी रहती है
इज्जत भले ही चढ़ा देगी सूली पर
बिक जाती गाजर, खीरा,मूली पर
जान ले लेती है मीठी-मीठी शीत से
बड़ी बहु को नौकर छोटी की प्रीत से
नूर फातिमा खातून “नूरी”
जिला -कुशीनगर