Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Aug 2024 · 2 min read

बड़ा सा आँगन और गर्मी की दुपहरी मे चिट्ठी वाले बाबा (डाकिया)

बड़ा सा आँगन और गर्मी की दुपहरी मे चिट्ठी वाले बाबा (डाकिया) की साइकिल की ट्रिन्ग ट्रिन्ग और उससे भी मीठी कानो मे रस घोल देने वाली उनकी आवाज “बिटिया” खाकी वर्दी में कंधे से लटका भूरा झोला उतारते हुए जब वो नीला अंतर्देशीय ख़त पकड़ाते थे तो लगता था जैसे ख़ज़ाना हाथ लग गया हो। पत्र जितनी बार पढ़ो भेजने वाले की आवाज़ में ही एक एक शब्द जेहन में गूंजते थे। कभी ख़ुशी, कभी ग़म, कभी आंसू, कभी मुस्कुराहट का ज़रिया बनने वाले वो अंतर्देशीय पत्र अब दिखाई नहीं देते। खो गईं वो चिठ्ठियाँ जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे, “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे। बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते थे.उसके बीच लिखी होती थी पूरी दास्तां किसी मे माँ की तबीयत की खबर किसी मे पैसे भेजने का अनुनय तो फसलों के खराब होने की वजह कितना कुछ तो सिमट जाता था उस नीले कागज के टुकड़े मे परदेश से पति द्वारा भेजे गए पत्र को नवयौवना भाग कर “सीने” से लगाती और अकेले मे कितनी बार आँसू बहा बहा कर पढ़ती थी.गाँव का गौरव थी ये “चिठ्ठियां”“डाकिया चिठ्ठी” लायेगा कोई बाँच कर सुनायेगा देख-देख चिठ्ठी को कई-कई बार छू कर चिठ्ठी को अनपढ भी “एहसासों” को पढ़ लेते थे…!! एक वाकया और याद आया कभी कभी तो सहेलियों की चिट्ठी पढ़ने का बकायदा बुलउआ होता और सब सहेलियाँ इतनी खुश होती जैसे उनकी खुद की चिट्ठी आयी, मज़ा तब और आता जब सहेली को लिखना पढ़ना बहुत कम आता और वो ये उम्मीद करती की पढ़ने के साथ साथ इसका जवाब भी तुम्ही दे दो.और फिर शायरियाँ की खोज शुरू होती थी अब तो मोबाइल पर उँगलियाँ चलती है डाटा भर जाने पर डिलीट भी हो जाती है.पूरी दुनिया सिमट के रह गयी मोबाइल मे वैसे ही घर सिमट कर रह गए छोटे छोटे फ्लैटों मे सारे जज़्बात सिमट कर रह गए दो लाइन के मैसेज मे

1 Like · 55 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Loading...