बड़ा रोया हूं मैं तेरी जुदाई में।
तेरे साथ बीते लम्हों ने मुझको जीने ना दिया है।
हो भीड़ या हो तन्हाई कहीं मुझको रहने ना दिया है।।1।।
कुछ बूंदें आब की बरसी थी अब्रसे सेहरा जमीं पे।
पर जलती रेत की गर्मी ने इसे जज्ब होने ना दिया है।।2।।
मुद्दतों बाद खुशियां आयी थी मेरे घर आंगन में।
तेरे इश्क में मिले गमों ने मुझको हंसने ना दिया है।।3।।
तुझसे दूर होकर के भी मैं जीता रहा हूं तुझको।
दिल से तेरी यादों को कभी मैंने मिटने ना दिया है।।4।।
कोशिशें तो बहुत की जमाने भर के ही लोगों ने।
पर अकीद ए खुदा ने मेरे सरको झुकने ना दिया है।।5।।
बड़ा रोया हूं मैं तेरी जुदाई में चुपके चुपके तन्हा।
पर तुमने कभी भी मुझको अपना होने ना दिया है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ