बड़ा भाई ( घर परिवार के बड़े भाइयों को समर्पित कविता)
पिता सी डांट फटकार।
माता सा स्नेह दुलार ।
बड़ा भाई होता परिवार रूपी ,
इमारत की नींव का आधार ।
पिता की जिम्मेदारी ।
माता की उम्मीद सारी ।
सर पर अपने बांधे ,
कर्तव्य पथ पर चलता ,
भूलकर अपने सारे अधिकार ।
संयम ,संतोष , धैर्य ,त्याग, सहनशीलता ,
जाने कहां से आ जाती उसने सक्षमता,
अपने माता पिता के बंटते प्यार को ,
कर लेता जो सहर्ष स्वीकार ।
नई संतान के आगमन पर,
बैठा दी जाती उसके मन में घुट्टी ।
“तुम अब बड़े हो गए हो बेटा !
तुम इसके बड़े भाई हो ,
और बड़ा भाई माता पिता के समान होता है”
इतना सुनकर ही देर से ही ,मासूम देता,
अपना बचपन बिसार ।
बचपन में अपने खिलोने ,
युवा होने पर अपने मनचाहे कपड़े या वस्तु ,
यहां तक के अपना प्यार भी कर देता ,
अपने अनुजों पर वार ।
बड़े भाई का बड़प्पन तो देखो ,
बंटता प्यार दुलार तो सह जाता है ।
परंतु उनकी डांट फटकार पर हिस्से दारी क्यों नही ,
यह पूछता है दिल हमसे बार बार ?
बड़ा भाई होना वैसे तो होती है ,
बड़े गौरव की बात ।
माता पिता के समान,
उनकी भी सेवा करनी चाहिए ,
अनूजों को दिन रात ।
अनूजों को सन्मार्ग पर चलाने हेतु ,
उन्हें होता फटकारने का भी अधिकार ।
विवाह जैसे अनेकों समारोहों में ,
यह माता पिता का सहारा है बनते ।
इन्हीं के प्रतिनिधि बनकर कई बार ,
पारिवारिक मसलों पर उपस्थित रहते ।
माता पिता के समान ही यह ,
बहनों का कन्यादान का मान है पाते ।
बड़े भाई तो वास्तव में होते है ,
परिवार का अहम सदस्य ।
माता पिता का सहारा तो वोह होते ,
मगर अनुजोँ के होते परम हितैषी सखा ,
गुरुजन ,माता पिता और राज़ दार ।
अतः हर माता पिता को चाहिए ,
करें अपनी सारी संतान को समान प्यार ।
और अनुजों का कर्तव्य करें लक्ष्मण , भरत ,
और शत्रुघ्न समान अपने राम समान ,
बड़े भाई का आदर सत्कार ।