— बड़ा अभिमानी रे तू —
कुदरत से कर रहे हैं छेड़खानी
सब कुछ हो रहा है अब बेमानी
धरती का सीना चीर कर रोज
कर रहा इंसान अब बेईमानी !!
जिस धरा ने दिआ है जीवन
उस पर अत्याचार कर रहा
फिर कहता है आयी नई बिमारी
अपने अंदर वो नहीं झाँक रहा !!
नए नए निर्माण अब तेज हो गए
लोगों के साथ खिलवाड़ हो गए
जिन्होंने चलना सीखा था अभी अभी
आज वो जंगल के शेर हो गए !!
कुदरत की बनी सब चीजे
अब इंसान को कहाँ भाती हैं
कर के मन्दिरों का वो निर्माण
खुद को बहुत बलवान हो गए !
अजीत कुमार तलवार
मेरठ