“बड़ाई”
“बड़ाई”
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कुछ लोग खुद की बड़ाई करते नहीं थकते !
पर वे महानुभाव कभी ये नहीं समझ सकते !
कि इससे उनका छिछोरापन ही झलकता है !
उनके अंदर की कमी सबके सामने आ जाता है !!
पूर्ण ज्ञानी व्यक्ति सदैव गंभीर हुआ करते !
यदा-कदा दिखावे का ढोल नहीं पीटा करते !
बड़ाई तो उनकी कोई और ही किया करते !
जिससे वो कभी आसमान पर न उड़ा करते !!
वैसे तो अपनी बड़ाई सबको ही अच्छी लगती !
जब ये किसी और के द्वारा क्रियान्वित की जाती !
पर जरूरत से ज़्यादा बड़ाई भी ठीक नहीं होती !
ऐसी स्थिति तो सदैव चापलूसी का रूप ले लेती !!
अपने अंदर के सद्गुणों को जागृत हम करते रहेंगे !
तो खुद-ब-खुद चहुॅंओर से बड़ाईयां मिलते ही रहेंगे !
और तब बड़ाई स्वीकार करने में अच्छे भी लगेंगे !
पश्चात् जिसके नव कार्य हेतु मनोबल बढ़ते ही रहेंगे !!
बड़ाई मिलते रहने पर हमारे अंग-अंग खिल जाते हैं !
अभाव में जिसके हीन भावनाएं मन में जग जाते हैं !
बड़ाई सचमुच किसी के बड़ापन के भाव को दर्शाता है!
जो एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर जाता है !!
बड़ाई करने वाला भी बड़ाई का हकदार होता है !
जो उसकी उदार मानसिकता का परिचायक होता है!
जो व्यक्ति औरों को बड़ाई कर प्रोत्साहित करता है!
वह निस्संदेह ही हर गुणों से सराबोर भी रहता है !!
बड़ाई मिलते ही मन में नए-नए ख्वाब सजने लगते हैं !
मन-मस्तिष्क में न जाने कितने तरंग उठने लगते हैं !
तो हम कुछ ऐसा करते रहें कि बड़ाईयां मिलती रहें !
खुद के साथ समाज का भी समग्र विकास होता रहे !!
“हिंदुस्तान”तरक्की के पथ पर अग्रसर सदैव होता रहे !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
© अजित कुमार कर्ण ।
किशनगंज ( बिहार )