बड़बोले बढ़-बढ़ कहें, झूठी-सच्ची बात।
बड़बोले बढ़-बढ़ कहें, झूठी-सच्ची बात।
क्या पाएंगे लोग ये, क्या इनकी औकात।।
चालें ओछी चल रहे, घटिया किस्मी लोग।
उछले-उछले फिर रहे, लगा खाज का रोग।।
अच्छा सबक सिखा गया, उनका ओछा वार।
जितना जिसको मान दो, उतना करे प्रहार।।
बाहर से मीठे बनें, भीतर रक्खें पाप।
छुरी दबाकर काँख में, करें राम का जाप।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद