बड़के भैया
लघुकथा
बड़के भैया
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आभासी दुनिया और प्रणाम भैया से आगे बढ़कर वास्तिवकता की दुनिया में आते ही प्रणाम भैया के साथ बेहिचक आगे बढ़कर पैर छूकर प्रफुल्लित होना आल्हादित कर गया। मन मुदित तो था, पर उसे तो जैसे विश्वास नहीं हो पा रहा था।
पर सच सामने था, जिसे झुठला पाने का तो प्रश्न ही नहीं था।
शायद इसे ही ईश्वर की लीला कहते हैं कि कल तक डरते हुए बात करने वाली अनदेखी,अनजानी बाला खुशी से फूली नहीं समा रही थी।
हाथ पकड़कर घर के भीतर ले जाने के साथ गर्वोक्ति के साथ एलान की मुद्रा में सबसे बड़े भैया के रूप में परिचय कराना और यह कहना कि मैं कहती थी कि मेरे भड़के भैया एक दिन जरूर आयेंगे। और देखो सब लोग मेरा विश्वास मेरे बड़के भैया के आने से जीत ही गया।
उसने भी डबडबाई आंखों के उसे गले लगा उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बड़के भैय्या होने की स्वीकृति दे दी। शायद उसे इस अप्रत्याशित घटनाक्रम की उम्मीद जरूर रही होगी।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक, स्वरचित