बड़का भइया
बड़का भइया (समाजिक कुरीति)
(भोजपुरी कहानी)
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अपना बेटवा के हतास मुर्झाईल, चेहरा देख के केतना ब्याकुल रहले फुलेना तिवारी।
फुलेना तिवारी अनाम गाँव के एगो बहुते गरीब किसान हऊये , वईसे समुचा गांव उनके फुलेने काका कहेला । उनकर तीन गो बेटा आ एगो बेटी…..सबके सब लईका अऊर प्रिरीया पढे में गांव जवार में अव्वल रहलन जहां तक ले लागल अपना सामर्था के अनुसार फुलेना तिवारी सबके पढवलन लिखवलन बाकीर केहू के भाग्य के बखरा केहू थोड़ही न होला ।
वइसे त गांव में कई लोगन के आगे पढे बदे छात्रवृत्तियो मिल जाला बाकीर फुलेना तिवारी के लईकन के इ सुविधा ना मीलल कारन एगो त बरहामन ऊपर से गरीब ना कवनों सोरस ना कवनो पैरवी। हार पाछ के बड़का लईकवा नोकरी के खातिर रोज भाग दऊड़ करे लागल पर इहवों त उहे हालात बा, धोबी के कुत्ता ना घर के ना घाट के।
नोकरी खातिर परीक्षा दीहलस एक जघे आरक्षण के कारन तनीके से रहगईल ……..दुसरा जघे घुस ना दे पवले के कारन मामला लटक गईल उहवें मोट घूस दे के घूरहू के मझीला लईकवा नोकरी पा गईल अदना सिपाही बा लेकिन एके साल में एगो टेकटर एगो दू पहीया वाला फटफटिया कीन लिहलस…. एतने ना चलेला त केतना रुआब से चलेला लागेला जईसे कही के लाटसाहब ह। काहे ना भाई सरकारी नोकरी आ ओहीयो में सिपाही रूआब त रहबे करी।
भीखम के छोटका के भी त नोकरीया होईये गईल । ओकर त हाईटो खीचघाच के पांचे फूट होई दऊर में भी कवनो खास ना रहे, लेकिन सबसे बड़का बात बाप के गेठरी में पईसा , बड़- बड़ साहेब सुबहा के बीच उठल बईठल, आ ओकरा पर सबसे बड़हन बात सोना पर सुहागा आरक्षन …….ओकरो बेरा पार हो गईल, ऊ त रेल गाड़ी में जीआरपी की सीआरपी अईसने कुछो कहल जाला ओह में सिपाही हो गईल।
सुने में त इहा तकले आवता रेलगड़ीया में आवे जाये वालन के मोटरी – गेठरी चेक करेला अऊर भुलीया फुसला के खुबे पईसा खिचेला। चलीं बीलाई के भागे सिकहर टूटल ऐही के कहल जाला , नाहीं त भुटेलीया कवने लायक रहल ह।
आज पांच महीना से रोजे फुलेना काका के बड़का लईकवा रजीव्आ ऐह आफीस सो आफीस , येह दुआर से ओह दुआर दऊर लगावता लेकिन हर जघे निरशे हाथ लागता , सरकारी त सरकारी कवनों प्राईवेटो काम नईखे मिलत , रोज सबेरे तईयार होके जाला लागेला जईसे आज नोकरी लेईये के आई बाकीर जब साझ के घरे आवेला त मुहवा सुखल आ लटकल रहेला जवना के देख के फुलेना तिवारी के हीयरा ब्याकुल होके खीरनी नू काटे लागेला।
आज हार पाछ के रजीव ई फैसला कईले हन की अब ऊ सरकारी नोकरी के चक्कर में ना परी अब दिल्ली चाहे पंजाब जाई ओहीजा कमाई भले जवने काम मिली । फुलेना काका भीखम से पांन सौ रोपेया पईंचा मांग के लईलन ह , ईहे रोपेया लेके राजीव दिल्ली जायेके तईयार भईलन ह, जईसेही राजीव घर से बाहर जाये बदे तईयार भईलें फुलेना काका उनका आज के जमाना में रोज बेरोज घटे वाला हर एक घटना से अवगत करावे लगलें, हर एक ऊच – नीच, सही – गलत, भला – बुरा से कईसे बचल जाय बतावे लगलन।
वैसे त राजीव फुलेना काका के अपेक्षा अधिक पढले बाड़े, तेज – तर्रार भी खुबे बाड़े बाकीर बाप त बापे होला ऊ अमीर होय या गरीब, कवनो भी जाती , सम्प्रदाय या समाज से होखे बेटा – बेटी के भविष्य, सुघर, सुनर जीवन यापन, स्वास्थ्य, भला – बुरा के प्रति हमेशा सजग रहेला । आज के जनरेशन ऐह बात के बुरा भी माने लागल बा ई कहके की काहे दिमाग के दही करतानी हम अब लईका नईखीं, हम आपन भला बुरा खुदहीं सोच आ कर सकीला। ऊ अब आपन सत्ता सिद्ध कईल चाहला परन्तु फिर भी बाप के मन सत्ता सिद्धि के लालसा से ना अपितु अपना बेटा बेटी के सुघर भविष्य, स्वस्थ जीवन के मंगल कामना बदे बेचैन रहेला।
खैर आज के जनरेशन या पहिले के जनरेशन ई सत्ता सिद्धि वाला लालसा येह उमर के एगो दुर्गम विन्दु ह कुछ लोग में ई आईये जाला । वईसे पहिले ई कीटाणु कुछ कम रहे आजकल जरूरत से जादा बा कारण आज के समाजिक परिवेश पहिले के अपेक्षा कुछ जादा खुला खुला सा हो गईल बा। छोड़ी सबे हमहुँ नाजाने कवने बात में लाग गईनी।
ह त फुलेना काका अच्छा तरह से सबकुछ समझा के तब कहीं राजीव के दिल्ली जाये दिहले।
दिल्ली में पहिले से हीं मंगल काका के सझीला लईका किशनवा रहेला ई ओकरे पता लेके उहवाँ पहुंचल, दु – चार दिन के भाग – दऊड़ के बाद राजीव के एगो कम्पनी में नोकरी मिल गईल। एक महीना उनकर खर्चा किशन उठवले पईसा मिलते ही किशन ऊ पईसा ईहवाँ के खर्च खोराकी छांट के फुलेना काका के नामे भेज दिहले , ई शिलशिला ऐही से ही चले लागल।
हौले – हौले राजीव अपने दुसरका भाई नवीन के भी दिल्लीये बोला लिहले । दूनो भाई पान छः साल खुब मेहनत से कमाके बहीन के बीआहे के तईयारी करे लगलन , एक दिन राजीव प्रितीया बदे केहू के बतावल जगह पर लईका देखे गईलन , लईका देखे में त ठीके ठाक रहे बाकीर रहे पक्का टीनहीया हीरो , जीन्स के पाईंट , हीरो छापदार वाला टी सरट आखी में लगावे वाला चश्मा मुड़ी में खोसले रहे…।
ई लईका राजीव के फुटलियों आंखी ना सोहाईल, बीना कवनों बाते बिचारे कईले ऊ वापस आ गईलें, आके सब बात अपना बाबूजी से उहे फुलेने काका से बतवल़ें
बाबूजी…. ऊ लईका कवनो भी ऐंगल से प्रितीयि के लायक नईखे , हमरा उ रिश्ता तनिको नईखे सोहात बाकी रउरा जईसन कहीं ऊहे होई। फुलेना काका अपना बेटा के बात से
बड़ा हर्षित भईलें ऊहो त ई बतीया जानते रहलें की हर एक भाई अपने बहीन के अच्छा से अच्छा घर बर देखि के हीं बीयाहल चाहेला।जब बरे नीक ना त बीआह कईसन ।
अब जहाँ – जहाँ लोग बतावे उहवे बाप बेटा बरतूहारी करे जाय लोग , घर सुघर मिले त बर ना आ बर सुघर मिले त घर ना , आ जहवाँ ई दूनों सुभईत मिले ऊहवाँ दहेज ऐतना मंगाय की सुनते बाप बेटा के झीनझीनी ऊपट जाय। खैर कईसो हीत पाहूँन के जोर जबरी एगो रिश्ता तय भगईल, वईसे त ईहों रिश्ता राजीव के मन लायक नाहीये रहे पर करें त का करें , जईसन जाथा वईसने नु कथा होई ।
जथा अनुसार बड़ा धुमधाम से प्रितीया बीआह भईल , सगरे रिश्तेदार नेवतल गईलें सबकर खुब खातिरदारी भईल, बिआह के दूसरे रोज प्रिती के बिदाई हो गईल । राजीव एक जाल से मुक्ति पा गईलन ।
देखिसबे कुरीति के दुष्परिणाम एगो बेटी एगो बहीन जवन बाप भाई के हृदय के टुकड़ा होले ई नामुराद दहेज के कारण समाज ओहके बोझ के संज्ञा देवेला आखिर ई कहा ले जायज बा, आज येही दहेज के कारण लोग भ्रूण के जांच कराके बेटियन के कोखे में मरवा देता , जवन बेटी लक्ष्मी के होले ओकरा जनमते जईसे सगरे घर में मातम पसर जाला , आखिर ई काहा तकले जाईज बा,जबकी हमरा देखे से माई बाप के सबसे जादा फिकीर बेटवन से जादा…. बेटियन के ही रहला।
समय बीतत गईल राजीव आ नवीन अपना कमाई के बलबूते अपना छोटका भाई प्रवीन के डाकटरी पढ़ा दिहलें एही बीच एक नीमन लईकी देख राजीव नवीनों के बीआह कई दिहलें , बीआह होखते नवीन के मेहरारू नवीन के बाप भाई से अलगा करा दिहलस ई कहके की कबले सबकर भूथरा भरत रहब काल्ह जब आपन बाल बच्चा होईहें त उनका के का देब घंटा। प्रवीनों के ई बात नीके लागल ऊ राजीव से कहलन राजीव कवनो आपत्ति ना कईलन सबका सहमति से नवीन अलग रहे लगलन।
ऐनें प्रविन डाक्टर बन गईलें उनकरो शादी बीआह हो गईल कुछ दिन त सब कुछ अच्छे से चलल । कुछ दिन बीतले फुलेना काका के स्वर्गवास हो गईल अबहीन उनका काम किरीया के पाचे दस दिन बीतल रहे प्रवीन के मेहरारू साफ साफ शब्द में कह दिहली की अगर भाईजी के तूं अपना संगे रखब त हम तोहरा संगे ना रहेम। प्रविनों त मजबुरे रहलन कारन ठूंठ पेड़ ना फले लायक ना छाया लायक ।
प्रविन राजीव से कह दिहलन तूं अब आपन खुदे चेत अब हम आपने परिवार के सम्हाले में परेशान बानी येहमें तोहरो बोझ कईसे ढोईं ना होखे त तूं नवीन भईया के संगे रह जा उनकर मेहरारू घरहीं नू रहेली बनावल खिआवल ऊ कई लीहें बाकीर हमार मेहरारू त नोकरी करेले ऊ फ्री त बीया ना जवन तोहके बनाई खियाई।
राजीव कुछ बोल त ना सकलें बस जीवन के परत दर परत उठत ई नेह के परदा से खुद के ठगल महसुस करत रहलन। सोचत रहलन का ऐकरे नाम जिम्मेदारी ह, ऐही के फर्ज कहल जाला आखिर ऐह फर्ज के परिभाषा ह का…?
किन्तु उनका कवनो उत्तर ना मिलल….।
अगर रऊरा बता सकीने त जरूरे बताईब.. जिम्मेदारी फर्ज के सही परिभाषा का होला ….।? नमस्कार
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन