बच्चों से घर होता रोशन-:
बच्चों से घर रहता रोशन,रोशन सारा जहान।
किन्तु यकायक रह जाता है घर से पुन: मकान।
चारों तरफ़ फरमाइशों का शोर गूंजता है।
पहले मैं पहले मैं का दौर गूंजता है।
शाम की फरमाइश सुबह और सुबह की रात को ही पूछ ली जाती है।
आनन्द तो दोनों को प्यार से खिलाने में ही आता है,
किन्तु मजबूरी वश एक से ही मन बहला लिया जाता है।
आधा अवकाश तो बैग खाली करने में
और आधा फिर से समेटने में ही गुज़र जाता है।
उत्सुकता और कौतूहल ऐसे जाग जाता है ।
बच्चों के साथ मन फिर से बच्चा बन जाता है।
सचमुच नई नई चीजें दिखाने में बड़ा ही आनंद आता है।
फिर शुरु होता है शिकायतों का दौर ,
दवा गोली की लापरवाही और सेहत सम्बन्धी हिदायतों का दौर।
कियअजीब बात देखिए शुरुआत में तो खर्च कम करने को लेकर जंग जारी थी
किन्तु अब रुपए पैसे की चिंता नहीं सेहत के विषय में गौर।
अब बच्चों के दूर रहने से एक दूसरे की सेहत का ख्याल आने लगा है।
बच्चों की जिम्मदारियों के साथ ही अपने स्वास्थ्य पर भी ध्यानजाने लगा है।
ऐसा लगता है कि इस घर से हमें प्यार होने लगा है।
धीरे धीरे बच्चों की पैकिंग का समय आने लगा है।
मम्मी को पुनः जुदाई मा भय सताने लगा है
मन वात्सल्य वश पुनः आगमन के ख़्वाब सजाने लगा है।
जब फिर से घर रोशन होगा नहीं रहेगा मकान ।
रेखा फिर से महक उठेगा यह सूना सा मकान।