बच्चों में संस्कार- दादी की पूजा
आज भी भाती है
वह पूजा दादी की
पहले लड्डू गोपाल को
नहलाना
श्रृंगार करना
टिका लगाना और
आसन पर बैठाने
फिर दादी के सामने
लड्डू गोपाल का
इठलाना
मेवा मावा का
हो जब थाली में
प्रसाद
तब मन ही मन
हमारा ललचाना
दौड़ भाग कर
करना काम दादी के
फिर हर काम के
दाम मांगना
दादी तो आखिर दादी थी
आँखे बंद कर
पूजा घर में बिठाती थी
आँखे खुलने पर
प्रसाद न देने को
धकियाती थी
साथ साथ में
दुनियादारी भी
समझाना
फिर बजाती थी
वह घंटी
पोपले मुँह से
होती थी आरती उनकी
पूरे आधे घंटे
तब देती थी
प्रसाद दादी
आज तरसते हैं हम
दादी के लड्डू गोपाल से
दादीकी पूजा से
और दादी के प्रसाद से
काश वह दिन
लौट आए
दादी के साथ
पूजाघर में बैठ जाए
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल