बच्चों पर आश्रित वृद्ध मां-बाप भी बेज़ुबान
बच्चों पर आश्रित वृद्ध मां-बाप भी बेज़ुबान
रिटायर पिता कुलदीप ” बेटा बाज़ार से आते हुए मेरी दवा ले आना ,मुझे खांसी ने बहुत तंग किया।” बेटा आलोक ने अनसुना कर दिया।पिता कुलदीप बैंक से अभी सात महीने पहले रिटायर हुए थे| सारा दिन घर में बैठे रहने के कारण पत्नी और बहु की किचकिच सुननी पड़ती| घर में चार कुत्ते पाल रखे थे| आलोक ने उनकी देखभाल के लिए नौकर लगा रखा था. उनके लिए ट्रेनर आता उनको अनुशासन और डॉग शो के लिए तैयार रखता| उनको अच्छी डाईट और सफाई का ध्यान रखा जाता। इनके जो बच्चे होते महंगे दाम बिकते,सारा खाना-पीना और नौकर खर्चा निकाल देते| कुलदीप को उनकी देख रेख को पास वाले कमरा दे रखा था। अचानक एक दिन उनका बहनोई संदीप घर मिलने आ गया ,”बोला इधर से गुजर रहा था,सोचा देखूं फुरसत के पल क्या मज़ा ले रहे हो,मगर तुम तो कुत्तों के पास कमरे में इनकी राखी कर रहे हो |” कुलदीप खामोश सा बोला,” हाँ कुत्तों का बेटे को बहुत शौक हैं ,यहीं बैठ गया| ” कुलदीप बात महसूस करके भी खुश हो को अंदर मेहमान कमरे में ले गया| खुद ही जाकर पानी और ठंडा लाया| तभी बेटा आलोक आ कुत्तों को हड़ियाँ डालता प्रणाम कर बोलता ” पापा इनका ध्यान रखना,आज नौकर नहीं आएगा।वो शनिवार को मछली की रेहड़ी लगाता। तभी पापा की कमरे से आवाज़ आई, “बेटा आलोक , मेरी दवा लाये। .” “ओह पिताजी, आपको पता है मुझे कितने काम होते आख़िर दवा से अधिक खाने पर कंट्रोल क्यों नहीं करते ,चटपटी फिश इतनी खा जाते हो। ला दूंगा इतनी जल्दी क्या है?” आलोक झल्लाया! पिता बहनोई को सम्बोधित होते,””क्या करता अंकल . “दरअसल, मुझसे बेज़ुबान प्राणियों की पीड़ा देखी नहीं जाती.क्या आलोक की संवेदनशीलता का दूसरा रूप भी दिखाई दे रहा था. वह सोच रहे थे, ‘क्या सिर्फ़ जानवर ही बेज़ुबान होते हैं? बच्चों पर आश्रित वृद्ध मां-बाप भी तो बेज़ुबान ही होते हैं.
स्वरचित – रेखा मोहन