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14 Nov 2021 · 1 min read

बच्चों ने सोचा (बाल कविता)

बच्चों ने सोचा: बाल कविता

पहले सोचा बच्चों ने
पेड़ों पर मौज मनाएं,
फिर घबराए कहीं पेड़ से
गिर कर चोट न खाएं।।

बैठ नाव में सैर सपाटा
फिर सोचा कर आएं,
फिर सोचा हम मझधारों में
कहीं डूब न जाएं।।

हुआ अंत में तय
गुब्बारा भरा गैस का लाओ,
पकड़ो डोरी से फिर नभ में
ऊंचे उड़ते जाओ।।

बदकिस्मत से चोंच
एक कौए ने ऐसी मारी ,
औंधे मुंह सब गिरे धरा पर
बच्चे बारी-बारी।।

रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर

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