बच्चों ने सोचा (बाल कविता)
बच्चों ने सोचा: बाल कविता
पहले सोचा बच्चों ने
पेड़ों पर मौज मनाएं,
फिर घबराए कहीं पेड़ से
गिर कर चोट न खाएं।।
बैठ नाव में सैर सपाटा
फिर सोचा कर आएं,
फिर सोचा हम मझधारों में
कहीं डूब न जाएं।।
हुआ अंत में तय
गुब्बारा भरा गैस का लाओ,
पकड़ो डोरी से फिर नभ में
ऊंचे उड़ते जाओ।।
बदकिस्मत से चोंच
एक कौए ने ऐसी मारी ,
औंधे मुंह सब गिरे धरा पर
बच्चे बारी-बारी।।
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर