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4 Feb 2020 · 4 min read

बच्चों के बिगड़ते हालात – जिम्मेदार हम तो नहीं

लेख
शीर्षक – बच्चों के बिगड़ते रिश्ते – जिम्मेदार हम तो नहीं l
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रेणुका उच्च स्तरीय परिवार से ताल्लुक रखती थीं उसके पिता शहर के नामी गिरामी उद्योगपति , माँ भी हाई सोसाइटी में जीने वाली महिला थी l अब बात करते हैं रेणुका की, उसका कॉलेज चल रहा था , जैसे कपड़े बदले जाते हैं उस हिसाब से रोज गाड़ियां बदलती थी , दोस्तो के नाम पर सैकड़ो की लिस्ट जिसमे लड़कियों से ज्यादा लड़को की लिस्ट , पब में जाना, ड्रिंक करना फिर देर रात से घर आना उसकी दिनचर्या में धीरे धीरे से शामिल हो रहा था ..महीनों हो जाते हैं उसे अपने माँ बाप से बात किए हुए, उसे पता है कि घर में कोई बड़ा नहीं है जो मुझे टोकेगा या समझाएगा, हालाकि रेणुका भी जानती थी कि वह जो कर रही है वह ठीक नहीं है लेकिन उसका मन या मस्तिष्क यह मानने को बिल्कुल तैयार नहीं था कि जो कर रही है वह गलत है l
यह गलत करने का सिलसिला यही नहीं रुका, रेणुका की अब शादी हो चुकी थी उसने यह शादी अपने एक बॉय फ्रेंड रोहित से अपनी मर्जी से की थी, जो एक रईस बाप की बिगड़ैल औलाद थी, खैर ससुराल में उसे स्वीकार कर लिया गया लेकिन करुणा खुले स्वभाव की थी, देर रात तक घर से बाहर रहना , ड्रिंक करना सुबह दस बजे के बाद ही सोकर उठना, यहां भी जारी रखा lनई नई शादी हुई थी इसलिए कोई कुछ नहीं कहता लेकिन कब तक, रेणुका की सभी आदतों को अच्छे से जानने वाला रोहित ही अब उस पर झल्लाने लगा था.. ये क्या लगा रखा है तुमने पत्नी वाले कोई भी काम करती हो तुम… अब शुरु हुआ इस कहानी का दुखांत.. रोज रोज की किच किच, हालत मारपीट में तब्दील हो गए, सिर्फ छः महीने में ही तलाक हो गया, रेणुका अपने घर आ गयी लेकिन यहां भी उसे समझने वाला कोई नहीं था रात दिन ड्रिंक और डिप्रेशन में कैद होती चली गई..
अब बात करते हैं आखिर रेणुका के साथ गुजरा यह कालचक्र किस बिंदु पर आधारित था, हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक चक्र किसी न किसी बिंदु पर आधारित होता है बिना बिन्दु के कोई चक्र घूम ही नहीं पाएगा.. इस बिंदु की नींव उस समय ने रखी जो रेणुका को उसके माँ बाप से नहीं मिला l दूसरा कारण रेणुका के माँ बाप के अंदर अनर्थक महत्वाकांक्षाओं का जन्म लेना जिससे वो नहीं समझ पाए कि महत्वपूर्ण क्या है… उनकी असली दौलत बेटी या नकली रईसी का जुनून l तीसरा कारण रेणुका की माँ में ममत्व की कमी होना.. उन्होने कभी भी एक माँ का फर्ज अदा नहीं किया, हमेशा किटी पार्टियों, सहेलियों, तास की गड्डियों में ही खोयी रही l
एक बड़ा कारण शायद यह भी रहा कि अच्छे दोस्तों की कमी…रेणुका को कोई भी अच्छा दोस्त शायद मिला ही नहीं, यदि एक भी मिल जाता तो रेणुका आज डिप्रेशन में नहीं बल्कि अपने परिवार के साथ ख़ुश होती l एक सर्वे की अनुसार भारत में हो रही धोखाधड़ी, अपहरण, या हत्या के मामलो में अहम भूमिका किसी दोस्त या रिश्तेदार की ही रही l
रेणुका की इस हालत का एक अहम कारण उसका पति भी रहा, अगर वो चाहता तो प्रेम के सहारे उसकी आदतों को सुधार सकता था, यहां भी समय कालचक्र का केंद्र बिंदु बनने से पीछे नहीं रहा, यदि रेणुका और रोहित में सामंजस्य स्थापित हुआ होता, ससुराल के लोग उसे एक बेटी की तरह ट्रीट करते, शायद वो जिस प्यार से वंचित रही वो मिल जाता तो आज रेणुका की भी ससुराल होती l
यह कहानी सिर्फ एक रेणुका की नहीं है न ही एक राहुल की है यह कहानी है हमारे अपने बच्चों की, हमारे भविष्य की l आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम अपनी संतानो को रिश्तों की अहमियत बताना शायद भूल जाते हैं l ओर इस बात का पता हमे तब चलता है जब हमारे बच्चे तलाक तक आ जाते हैं फिर निष्कर्ष में डिप्रेशन होता है या फिर हद से ज्यादा ड्रिंकिग l

रिश्तों के बनने या बिगड़ने का अहम हिस्सा पूरी तरह से परिवार पर निर्भर करता है l एक सर्वे के अनुसार संयुक्त परिवार के बच्चे, एकल परिवार के बच्चों की अपेक्षा, अधिक समझदार, अधिक संयमित, भावनाओं की कदर करने वाले, रिश्तों को अहमियत व सम्मान देने वाले होते हैं l इसका सीधा प्रभाव रिश्तों पर पड़ता है l काम काजी दंपती को यह अवश्य चाहिए कि अपने बच्चों को किसी आया के भरोसे न छोड़कर, दादा दादी, नाना नानी या किसी दूसरे परिवार के सदस्यों के साथ रहने दे… परिवार के बुजुर्ग ही बच्चों को सही आचरण का ज्ञान करा सकते हैं, वो बता सकते हैं रिश्तों में अहम, अविश्वास, की कोई जगह नहीं..
लेकिन आज ज्यादा से ज्यादा लोग एकल परिवारों में ही खुश रहने की कोशिश कर रहे हैं, घर के बुजुर्गों को असभ्य समझा जाने लगा है और इसके दुखद परिणाम भी सबके सामने आ रहे हैं l आज रेणुका या रोहित के घर में कोई बुजुर्ग होता तो तो हालात यह नहीं होते, रेणुका के ग्रांड पेरेंट्स उसे अच्छे बुरे के बारे में अवश्य बताते और शादी के बाद रोहित के ग्रांड पेरेंट्स उसके साथ कभी बुरा नहीं होने देते… शायद सारे समीकरण ही बदले हुए होते..
अब भी समय है हम लोगों के पास, रेणुका और रोहित की कहानी, अपने बच्चों की कहानी बनने से रोकना होगा अन्यथा हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को जबाब नहीं दे पाएंगे कि हमारे सभ्यता क्या थी कैसी थी.. रिश्तों से परिवार बनता है ओर परिवार से एक अच्छा समाज.. इसलिये अपने बच्चों की खातिर, अपने भविष्य की खातिर, हमें लौटना होगा अपने माँ बाप के पास, अपने बुजुर्गों के पास….

राघव दुबे ‘रघु’ (स्वतंत्र लेखक)

महावीर नगर, इटावा (उo प्रo)
8439401034

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 2 Comments · 227 Views
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