रीति – रिवाज
समाज की हमारी रीति – रिवाज ,
किसने ऐसी गढ़ायी रीति – रिवाज?
प्रसन्नता में तो भरपूर लेते ,
पर कष्ट में भी ना तजते हमें ,
दरिद्रों को असमृद्ध गढ़ाया ,
समाज की हमारी रीति – रिवाज ,
समाज की रीति – रिवाज मिटायें ,
जाति – धर्म का भेददृष्टि मिटायें ,
कष्ट में दान प्रचलित प्रथा हटायें ,
उल्लास में ना वज्रपात दान से ,
समाज की रीति – रिवाज बदलें ,
ऐसी नव युक्त रीति – रिवाज लिखें।
जन्म, मरण, शादी, मुंडण ,
हर लम्हा रीति – रिवाज समक्ष ,
हम मनुजों को गनीमते को ,
ईश्वर के मिथ्या श्रपितम गढ़ ,
हम मनुजों को ऐंठने चलते।
यह ब्रह्माण नूतन पाठन पढ़ाते ,
हिंदु, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई ,
जाति – धर्म व छुआ – छूत पर ,
लड़ाते हम मनुजों को है ,
कपटी, छलीय ब्रह्माण वह ,
हम भ्राता को बाँटने वाला भी ,
यही तृष्णालु मनुज ब्रह्माण है।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या