बच्चे
दुधमुहें बच्चे कभी जब मुस्कुराते हैं
ऐसा लगता है कोई दौलत लुटाते हैं
दो बरस की उम्र में सीखे हैं इतराना
बॉलीवुड के डांस पर ठुमका लगाते हैं
कुछ खिलौनों से बड़ी है दोस्ती इनकी
रात में अक्सर इन्हीं को दुख सुनाते हैं
याद रहती हैं जमाने भर की बातें पर
हाथ मुंह धोना ये अक्सर भूल जाते हैं
ज़िन्दगी हरगिज़ नहीं है मसअला कोई
ज़िन्दगी को मसअला हम ख़ुद बनाते हैं
— शिवकुमार बिलगरामी