बच्चे होते हैं सच्चे ही।
गज़ल- बच्चे
22…..22……22…..22
बच्चे होते हैं सच्चे ही।
घर में खुशियां बच्चों से ही।
चंचल चहरे हँसते रहते,
जैसे हों लगते अच्छे ही।
मन मेरा भी पुलकित होता,
बच्चों को देखें हँसते ही।
घर में सन्नाटा छा जाता,
बच्चों के घर मे सोते ही।
‘प्रेमी’ गुंजित हो जाता घर,
बच्चों के पैदा होते ही।
…….✍️ प्रेमी