बच्चे थिरक रहे हैं आँगन।
छम छम छम छम बरसे सावन।
बच्चे थिरक रहे हैं आँगन।
पाँव पटक कर छप छप करते।
अपनी अँजुरी में जल भरते।
झूम-झूम मृदु मुस्कानों सें-
मंत्र मुग्ध हो मन को हरते।
दृश्य मनोहर परम सुहावन।
बच्चे थिरक रहे हैं आँगन।
मुग्ध हृदय है बेसुध तन-मन।
नहीं फिक्र है कोई उलझन।
कीचड़ में लथपथ होकर ये-
लगा रहे मिट्टी का उबटन।
निश्छल निर्मल अनुपम पावन ।
बच्चे थिरक रहे हैं आँगन।
छोटी-सी जल धारा बहती।
जहाँ नाव कागज की चलती।
छोटे-छोटे मन के अंदर-
बड़ी-बड़ी आशाएँ पलती।
सुन्दर सुखकारी मनभावन।
बच्चे थिरक रहे हैं आँगन।
कुसुम सुकोमल हर्षित उपवन।
भींग रहा बारिश में बचपन ।
स्वप्न सुहाने भरे नयन में-
हँसता जीवन करता खनखन।
सुख से चमक रहा है आनन ।
बच्चे थिरक रहे हैं आँगन।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली