बच्चा सिर्फ बच्चा होता है
लघुकथा
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बच्चा सिर्फ बच्चा होता है
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मालती आज अपने आठ वर्षीय पोते को लेकर मालिक के घर झाड़ू-पोंछा करने आई थी। बच्चा वहाँ पहुंचते ही ड्राईंग रूम के सोफे पर पसर कर बैठ गया।
मालती की नजर उस पड़ते ही घबरा गई। वह धीरे से बोली, “बेटा, ये मालिक लोगों के बैठने की जगह है। उतरो यहाँ से, नीचे बैठो। मालिक लोग देख लेंगे, तो डांट पड़ेगी।”
संयोगवश उसी समय मालिक वहाँ आ गए। बोले, “कोई बात नहीं बेटा, बैठे रहो। ये सबके लिए बैठने की जगह है। अच्छे से पढ़ो-लिखो, फिर तुम भी अपने लिए एक बड़ा-सा घर बनवाना और बैठने के लिए ऐसे ही सोफे रखना।” फिर मालती की ओर मुखातिब होकर बोले, “मालती, बच्चा सिर्फ बच्चा होता है। वह अमीर-गरीब और नौकर-मालिक से परे होता है। बड़े होने के नाते हम लोगों को उन्हें सदैव आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए।”
“जी मालिक, आप एकदम सही कह रहे हैं।” वह बोली।
मालती की आंखों में आंसू थे।
वह मालिक की बहुत इज्जत करती थी। आज उनकी बातें सुनकर वह उनके प्रति श्रद्धा से भर गई।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़
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