बची रहे मानवता
कोरोना के कहर से हमने
अनुभव यह पाया है
धन-दौलत, पद, सत्ता का
मोह बस भूल-भूलैया है।
हो सत्ता के सिरमौर या
सुंदर स्वस्थ बदन गठीला
उसके आगे एक न चलेगी
है ये मौत बड़ा हठीला ।
गंदगी फैला रखी थी जो हमने
अब वह पता चलने लगा है
धूल छंट गई है हवा की
अंबर भी नीला दिखने लगा है।
घर जो सूना-सूना था अब तक
वो स्वर्ग से सुंदर लग़ने लगा है
बुजुर्गो के अनुभवों को सुनकर
मन भी चहकने लगा है।
जीवन की मूल आवश्यकता
भोजन, वस्त्र, आवास है
अतिसंग्रह की प्रवृत्ति से हम
भागते दिन-रात बदहवास हैं।
सद्आचरण और सद् विचार
से ही जीवन ये गुलजार है
मानवों में बची रहे मानवता
यही हर मर्ज की उपचार है।
©️रानी सिंह, पूर्णियाँ, बिहार।