बचाये रखना तुम प्रेम कुछ उन दिनों के लिए,
बचाये रखना तुम प्रेम कुछ उन दिनों के लिए,
जब झल्लायी सी मैं डपट दूँ तुम को ,
भूल देश दुनिया, समाज को।
और तुम मेरे प्रेम में मुझे गले लगा बोलना,
“मुझे पता है तुम अभी बहुत परेशां हो ,मैं तुम्हारे साथ हूँ।”
थोड़ा प्रेम उन दिनों के लिए भी रखना ,
जब शर्मिन्दा होऊं मैं अपनी त्रुटियों पर ,
नज़रें अपनी खुद से ही न मिला पाऊँ,
देकर मुझको अपने प्रेम का आलम्बन ,
नज़रों से नज़रों में उठा तुम देना।
थोड़ा प्रेम उस वक्त के लिए भी बचाना ,
जब जीवन खाली खाली सा लगता है,
घोंसले का हर पाखी अपनी उड़ान उड़ता है।
तब अपने प्रेम से मेरा सब सूनापन भर देना तुम,
सच कहती हूँ मेरे कमज़ोर समय को अपने प्रेम के अंक में भर लेना तुम।