बचाना है गर हिंदुत्व
दूर दूर तक
नजरें उठा कर देखने के बाद
ऐसा दिखाई देता है.
किसे समझा रहे है,
हम,
जिन्होंने सुनना
छोड दिया है
देखना बंद कर दिया है.
तोड़ फोड़ ही जहां.
धर्म है,
सृजन पर पाबंदियां हैं,
दीवारों पर लगे,
इस्तिहार ही सच है.
जो धर्म ग्रंथों में लिखा है.
वह आखिरी सत्य है.
अस्वीकार ही मौत है.
तब हमें करना भी क्या है.
कुएँ की पेंदी ही घर है.
फिर नूतन क्या है,
इस जहान् में.
याद करो.
शास्त्रार्थ करो.
और वंचितों को लगाम दो.
यही देश प्रेम है.
फिर नफरत कैसी.
.
संभावनाओं को नकार दो.
आयामों को विराम दो,
होगा सर्व विनाश,
सृष्टि को संदेश दो.
धर्म को काम दो,
रोक सको तो रोक लो,
वरन् कपोल कल्पित को त्याग दो,
तर्क वितर्क से निखार लो,
बचाना है गर हिंदुत्व,
नूतन प्रयोग कर,
दिशानिर्देश जारी हों,
.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस