बचपन
लौट चलें आओ बचपन में।
माँ की ममता प्यार पिता का मिलता था दोनों आंगन में।।
माँ की गोद पिता का कंधा,
दादी माँ का प्यार था अंधा।
खाना पीना और खेलना,
बस इतना था अपना धंधा।।
छाई थी अपनी ही हस्ती घर हो या बाहर उपवन में।
लौट चलें आओ बचपन में।।
जीत गये तो जिद पर अड़ना,
हार गए तो खूब झगड़ना।
खींच खींच कर माँ का आँचल,
बुरा हाल रो रो कर करना।।
सुनकर डांट पिता की जाकर छुपना माँ के आलिंगन में।
लौट चलें आओ बचपन में।
मैं न हँसु तो माँ रोती थी,
मैं सोऊँ तो माँ सोती थी।
लड़ जाऊँ मैं अगर किसी से,
जीत सदा मेरी होती थी।।
बीत गये कब बचपन के दिन कब सावन बदला अगहन में।
लौट चलें आओ बचपन में।
प्रभु नाथ चतुर्वेदी “कश्यप “