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22 Aug 2024 · 1 min read

बचपन

बचपन
__________
तन मटके मुस्कान मधुर, खाये हिचकोले माटी में।।
मन अबोध निश्छल निष्कंटक, सरपट डोले माटी में।

पग आरंभिक रखने का सुख,
शब्द नहीं वर्णित कर दे।
मात पिता के अंतस् सुख को,
निश्चय ही अगणित कर दे।
कभी गिरे फिर उठकर चल दे,
हिम्मत तोले माटी में ।

मन अबोध निश्छल निष्कंटक, सरपट डोले माटी में।।

गिर जाना गिरकर उठ जाना,
जीवन का संघर्ष यहीं।
हर बाधा को भेद सफलता,
मिल जाए है हर्ष यहीं।
बचपन हमको नित सिखलाता,
अड़चन खोले माटी में।

मन अबोध निश्छल निष्कंटक, सरपट डोले माटी में।।

बचपन की हर बात निराली,
नभ छूने की अभिलाषा।
मात- पिता के दृग में केवल,
पले यही इक प्रत्याशा।
इस सपने को सँजो हृदय में,
बचपन सोले माटी में ।

मन अबोध निश्छल निष्कंटक, सरपट डोले माटी में।।

बीत गये दिन जो बचपन के,
कहाँ लौट फिर आते है।
यादों में दे हमें निमंत्रण,
हर पल ही तड़पाते हैं।
मन करता है त्याग दें यौवन,
बचपन रोले माटी में।

मन अबोध निश्छल निष्कंटक, सरपट डोले माटी में।।

✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 61 Views
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