बचपन
कहाँ रह गये वो मेरे बचपन के दिन,
वो भोले से प्यारे से, नाज़ुक से दिन,
गाँव के बाहर वो बौराई अमराई,
ये जिंदगी जिसे पीछे ही छोड़ आई,
वो कच्ची कच्ची अंबियों की फांकों के दिन,
वो इमली, वो कमरख, करौंदों के दिन,
वो खेतों में फूली हुई पीली पीली सरसों,
बसी है आँखों में, बीत गये बरसों,
वो सोने से गेहूँ की झूमती बाली,
वो धान के खेतों पे सूरज की लाली,
वो तितलियों के पीछे पीछे भागने के दिन,
वो रंभाती गैया,वो नटखट से मासूम बछड़ों की मैया,
वो चूल्हे की रोटी की सौंधी सौंधी खुशबू,
बता मेरी आली मैं कैसे भुला दूं?
नदी के किनारे का वो बूढा़ बरगद,
दूर से चमकता वो शिवाले का गुंबद,
वो मंदिर की घंटियां, वो आरती वो अर्चन,
लौट लौट फ़िर वहीं जा टिकता है मन,
लौटा दे तू ही मेरे बचपन की आली,
वो आरती की सजी हुई थाली से दिन,
चांदी सा चमकता वो दूधिया झरना,
जो मिल जाए तुझको कहीं, उससे कहना,
मन, प्राण मेरे वहीं पर बसे हैं, पर,
नियति के दलदल में पांव मेरे धंसे हैं।
नियति के दलदल में पांव मेरे धंसे हैं।