‘बचपन’
‘बचपन’
चंचल निश्छल प्यारा, मेरा बचपन बिछुड़ गया।
जग से चिंता रहित दुलारा,
जाने किधर गया।
मेरा बचपन बिछुड़ गया…
हंसते रहते थे मिल जुलकर,
खेला करते थे खिल-खिलकर,
मित्र मंडली के संग जब,
वो जीवन अब सिकुड़ गया,
मेरा बचपन बिछुड़ गया….
करता था खींचातानी,
कुछ भोली सी नादानी,
सुनता माँ से कहानी,
अब वो निचुड़ गया,
मेरा बचपन बिछुड़ गया…
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