बचपन
मैं अक्सर सोचती हूं
रात के गहरे अंधेरो में
न जाने क्यूं वो बीते पल
अभी भी मुझमें ज़िंदा हैं
मुझे अक्सर ही लगता है
शहर शमशान हो जैसे
ये रातें सो रहीं हैं और
बचपन जागता क्यूं है।
मैं अक्सर सोचती हूं
रात के गहरे अंधेरो में
न जाने क्यूं वो बीते पल
अभी भी मुझमें ज़िंदा हैं
मुझे अक्सर ही लगता है
शहर शमशान हो जैसे
ये रातें सो रहीं हैं और
बचपन जागता क्यूं है।