बचपन
अहा! वो बचपन की यादें!
वो गोदी में सोना, वो चीख-चीख कर रोना,
वो लाड-वो प्यार, वो खुशियाँ बेशुमार,
वो पापा की डांट, फिर अपने ठांट-बांट,
वो मम्मी का मनाना, बहलाना और फुसलाना।
कोई मुझे मेरे वो गुमसुम पल लौटा दे,
अहा! वो बचपन की यादें!
पुरे मुहल्ले की चक्कर, फिर घर पहुँचना थककर,
खेल-खेल में लगती चोट, और तब बहानों की ओट,
चॉक्लेट से दोस्ताना, मानो रिश्ता सदियों पुराना,
लोरियों की वो धुन, जल्दी बड़ा होने का जुनून,
कहीं दब-से गए वो अपने बेबाक़ इरादें,
अहा! वो बचपन की यादें!
कीचड़ से सने पाँव, नाले में बहती कागज़ की नाव,
जेब में एक रुपये का ढिंढोरा, खूब मस्ती और पढ़ाई थोड़ा,
खिलौनों की असीम सौगात, चीनी भरी रोटी का बेजोड़ स्वाद,
बोली में वो तुतलाहट, आँचल की छाँह में मिलती राहत,
उन्हें वापस पाने की करता हूँ तमाम मुरादें,
अहा! वो बचपन की यादें!
ऊँगली पकड़ कर चलना, कुर्सी के नीचे जा छिपना,
कार्टूनों से लगाव, सल्ला में समझौता-कट्टी से अलगाव,
न जिम्मेदारी का भान, न रत्ती भर ईर्ष्या-न अभिमान,
वो मेले घूमने की ज़िद, सर्कस में जोकरों का हो जाना मुरीद,
उन लम्हों की स्मृतियाँ अक्सर चेहरे पर रौनक ला दे,
अहा! वो बचपन की यादें!
बीतता गया यूँ ही वक़्त, देके कुछ आनंद वहीं कुछ दर्द,
अब जूते हमारे छोटे पड़ गये, किताबों के वजन भी कुछ बढ़ गए,
पेंसिल की जगह कलम ने ले ली, नन्हें हाथ बन चले सख़्त हथेली,
पढ़ाई के ख़ातिर घर से हुए दूर, ज़िन्दगी के सामने हम हुए मजबूर,
तलब उठती है जेहन में, कोई फिर मुझमें मेरा छुटपन जिला दे,
अहा! वो बचपन की यादें, आह! वो बचपन की यादें!