बचपन
साया जब तक है मात पिता का
बचपन अपना जिंदा है
आशीर्वाद है बुजुर्गों का जब तक
बचपन अपना जिंदा है
भले उमर हो जाए पचपन
बचपन कहीं नही जाने वाला
जब तक हाथ है हमारे ऊपर उनका
बचपन अपना जिंदा है
वो रेस डीप वो लंगड़ धप्प
वो छुपा छुपाई याद है हमें
वो पिट्टू वो खो खो कबड्डी
और वो कंचे याद है हमें
वो गंदे कपड़ों में धूल से सने लौटना
भला कैसे भूलेंगे कभी
मिला आशीष मात पिता का तभी तो
बचपन अपना जिंदा है।
वो विद्यालय का प्रथम दिवस था
आज तलक याद है मुझे
आंखों से बहना गंगा जमुना
और दुलार मात का याद है मुझे
वो ममतामयी आंखों का स्नेह
कैसे भूल पाएगा कोई
था बलिदान, त्याग और प्रेम का
तभी तो बचपन अपना जिंदा है
उनका ही तो पुण्य प्रताप है
जिसने इंसान हमको बनाया है
संस्कारों से कर पल्लवित सुसंस्कृत
इंसान हमको बनाया है
यह सामाजिक मान और प्रतिष्ठा
सब उनके ही कारण है
सत्य सनातन के आदर्शों से परिपूर्ण
इंसान हमको बनाया है
इति।
इंजी संजय श्रीवास्तव
बीएसएनल,बालाघाट (मध्य प्रदेश)