बचपन
“बचपन”
बचपन की भोली, अबोध लालसाएं,
जब लड़कपन, बांकपन से होती हुई
जवानी की दहलीज से गुजरकर भी,
अतृप्त अपूर्ण अधूरी ही रह जाती हैं
तो भोलापन, बन जाता है, हुशियारी,
अबोध लालसायें, लालच हो जाती हैं
शरारतें उभर आती हैं बेहयाई बनकर,
और नजरों में बेईमानी उतर आती है
इसीलिए, जब भी आप, बच्चों से मिलें,
उन से, उन्हीं के लहज़े में, बात कीजिए
पूछने दीजिए उन्हें उत्सुकता भरे सवाल,
आप उनके बचपन से मुलाक़ात कीजिए
बालसुलभ उत्सुकताएं उत्कंठाएं लालसाएं,
हर बचपन को मिली, कुदरत की सौगात हैं
इन्हें भरपूर खिलनें दें शरारतों के आंगन में,
इन्हीं हरकतों में पनपते, इंसानी जज़्बात हैं
बचपन, अगर जो बच्चों का, खुला खुला होगा,
दिल रहेगा बाग़ बाग़, चेहरा खिला खिला होगा
दुनियादारी की समझदारी, जो रखेंगे आप इन से दूर,
गलतियों में भी इनकी कामयाबी का सिलसिला होगा
~ नितिन जोधपुरी “छीण”